सोमवार, 24 मार्च 2008

गर्द

गर्द उड़ती है आज वहां
तेरा आशियाँ था जहाँ
वो जहाँ जो तुने संवारा था
वो दुनिया जो तुने बनाई थी
आज तेरा नाम-औ-निशान तक नहीं
तेरे तारीख़ से कोई वाकिफ नहीं
कोई तुझे पहचानता नहीं
तेरी याद को इक लम्हा नहीं
वो गलियां जहाँ ज़माने गुजारे तूने
वहां तेरे क़दमों की आहत तक नहीं
जिन्हें नाज़ से तू कहता था अपना
अजनबी हैं वो तेरी कमी से भी
जहाँ लौट-लौट जाती है तेरी रूह आज भी
हवाओं ने बिखेर दी तेरी ज़िन्दगी वहीँ
ए बन्दे तू मासूम है आज भी युहीं
वक्त एक रफ्तार है सुम्झा नही कभी