धड़कते धड़कते, आखिर थक ही गया दिल तुम्हारा
चलते चलते, आखिर थम ही गया दिल तुम्हारा
एक पुर्जे की तरह रुकना ही था उसे
रफ़्तार से बहुत तेज़ जो चल रहा था
ये मैं नहीं , वो मशीन बता रही थी
जो तुम्हारे सिरहाने, खामोश लगी थी
हम टकटकी बांधे, उसी को देखते थे
तुम अभी हो, जान कर सुकून पाते थे
मगर जिस घडी दिल ने तुम्हारे जवाब दिया
लकीरें सपाट हो गयीं , चेहरा शांत हो गया
शिकन माथे से गायब हो गयी
तुम्हे जैसे निजात मिल गयी
क्या हश्र किया था तुम्हारा, दवा के ठेकेदारों ने
और हमारी तुम्हे जिंदा रखने की कोशिषों ने
सुईयों से तुम्हारी हर नस खुबो रखी थी
और खुराक के नामपे ट्यूब चढ़ा रखी थी
तुम्हारी बदहवासी की हालत में
जो जी चाह किया बेरेह्मों ने
और हम, सिर्फ हाथ मलते रहे
तुम्हारी एक झलक पाने के लिए
दरबानो से मिन्नतें करते रहे
मगर क्या पहरा था उन दरवाज़ों पे
भीक मांगके भी उन्हें लांघ न सके
आखिर मर्ज़ ने ज़िन्दगी को हरा दिया
और तुम ने जहां को अलविदा कह दिया