कितनी जल्दी मिटा दी ज़माने ने तुम्हारी हस्ती
अब तुम्हे पूछता हुआ कोई आता नहीं कभी
जबकि ये घर आज भी वहीँ उसी मुकाम पे है
न कोई ख़त आता है तुम्हारे लिए , न कोई बिल
तुम्हारे फ़ोन की घंटी भी अब बजती नहीं कभी
वोह भी खामोश हो गया, तुम हुए जिस घड़ी
सब अकाउंट बंद हो चुके हैं तुम्हारे नाम के
और उधारी के सब कार्ड भी ब्लाक
तुम्हारे इस दुनिया में न होने का सबूत
लोग मेरी आँखों से लेते क्यों नहीं
सिर्फ सरकारी दस्तावेज़ ही क्यों मांगते है
तुम्हारे न होने का तकाज़ा मुझसे बार बार करते हैं
वोह जो तुम्हारी ज़िन्दगी के एवाज़ में चेक भेजते हैं
क्यों तुम्हारी रुक्सती का नज़ारा
हर रोज़ दिखाते हैं वोह मुझे
जब मुर्दों को जिया सकते नहीं
जिन्दों को जीने देते क्यों नहीं
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