रविवार, 9 जून 2019

मुन्नी



सांझ हो चली थी
मुन्नी कंकड़ों से
झोंपड़ के बाहर
खेल रही थी
मुन्नी के पापा
अब आते ही होंगे
सोच मै भीतर चली
आंटा गूंद ही लूँ
रोटी सेक ही लूँ
मैं भी पेट से हूँ
गौधूलि हो थक
जाती हूँ
मुन्नी कंकड़ों से
झोपड़ के बाहर
खेल रही थी
आग में लकड़ी
कड कड कर रही थी
धुंए से आँख
जल रही थी
दो ही पल तो
मै मुड़ी थी
मुन्नी अब कंकड़ों से
नहीं खेल रही थी
ओह ये लड़की
कितना सताती है
पेट लिए मै उठ भी
तो नहीं पाती
मुन्नी ! मुन्नी ! मुन्नी !
कहाँ छुप गयी मुई
मै तिलमिलाई
फिर घबराई
सब छोड़ नंगे पाओं
सड़क पर दौड़ गई
मुन्नी के पापा आते दीखे
चेहरे पे थी हैरानी
कहाँ भाग रही है बावली
कंठ सूख गया
अधीर हो रो पड़ी
मुन्नी ! मुन्नी ! मुन्नी !
पुलिस ने रपट नहीं लिखी
कहा जाओ यहीं कहीं होगी
क्या पता झोंपड़ लौट
गयी होगी
अब सन्नाटा है
मुन्नी मर गयी
लाश मिल गयी
पहचान में न आयी
मुन्नी अब कंकड़ों से
नहीं खेल रही


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