पंख मरोड़ के
तोड़ दिया
और चुनौती दी
उड़ सको
तो उड़ जाओ
बहुत ऊँची उड़ाने
भरता था तू
बहुत बलंदियों का
था गुमान
आज चार कदम भी
चल सकता नहीं
मेरी बैसाखी के बिना
फड फडाता
छट पटाता
कितना बेढब लगता है
ये पखेरू
सय्याद कितनी मुगालता
है तुझे अपनी कैद का
हाय कमबख्त तूने
आसमान देखा ही नहीं
ज़मीन पे था
तो क्या गम था
पींग न भर सका
तो इतना मलाल क्या
बेजुबान से कहता है
ज़रा उड़ के तो दिखा
इस आँगन के बाहर
1 टिप्पणी:
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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