रविवार, 30 दिसंबर 2012

nirbhaya/ निर्भया

मैं भी तुम्हारी तरह
जीना चाहती थी
आसमानों को
छूना  चाहती थी
अपने सपनों को
साकार करना चाहती थी
तुम्हारी ही तरह
खुली हवा में
सांस लेना चाहती थी
तुम्हारी ही तरह
जब जी में आये
इन गलियों में
घूमना चाहती थी
सुना था मैंने
यह हक़ हर बेटी को
संविधान ने दिया है
मुझे क्या पता था
यह सब कागज़ी बातें हैं
भारत माता की बेटियों को
किसी चीज़ का अधिकार नहीं
कोख से मरण शैया  तक
सिर्फ जीवित रहने के लिए
लड़ना पड़ता है

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