शनिवार, 22 अगस्त 2009

कंकाल

मांस का टुकडा समझ
नोच नोच कर खाया तुमने
अब तो कुछ बचा नहीं
फिर क्यों नहीं छोड़ते उसे
कंकाल से क्या भूख
मरती है किसी की
वो भी जब हर आघात से
आत्मा चीखती है उसकी
शायद तुम ही नहीं सुन पाते
काम ने बधिर जो कर दिया तुम्हे
मगर उसकी आँखें तो
देखी होंगी तुमने
भयभीत, आतंकित
खूंटे से बंधी
न आँगन को लाँघ सकी
न बाघ से बच सकी

3 टिप्‍पणियां:

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत वाडिया. जारी रहें.
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उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

अच्छी काव्य रचना के लिए आभार
शुभमगलभावो सहीत

खमत खामणा का महत्व

sandhyagupta ने कहा…

Likhte rahiye.Shubkamnayen.