बुधवार, 30 सितंबर 2009

बेडियाँ

निकले थे जहाँ से
उन्हीं वीरानियों में लौट आए
खोजते हुए आबादी
उन्हीं उदासियों में लौट आए
उठाये थे कदम
मंजिलों की तरफ़
हाय गुमशुदा हम
उसी दोराहे पे लौट आए
दोस्तों की तालाश में
मयखाने पहुँच गए थे
काँधा ढूँड ते
तेरे दर पे लौट आए
आसमान छूने को
पंख पसारे थे हमने
दामन में कुछ खार
कुछ ज़र्रे बटोर लाये
बेडियों को झटक कर
बढाये थे कदम हमने
दर्द ने नाता न तोडा
सलाखों में लौट आए

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